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           इत्र पुष्प -रजनीगंधा

 

 

इत्र छलकाती हुई सी
पुष्प की यह कुप्पियाँ
दमकती पँखुडियों ज्यों
प्रभातमयी रश्मियाँ
रजनीगंधा सुमन खिले
प्रहरी हरी पत्तियाँ

भौंपू तुल्य पुष्पों से
बखान रम्य रूप का
श्वेत मृदु मंजुल छटा जो
दर्प तोड़े धूप का
पवन संग बहती सुगंध
महका रही बस्तियाँ

रजनीगंधा पुष्प गुच्छ
दिया जब उपहार में
अंतस भाव प्रेषित हुए
मन विकल है प्यार में
प्रियतम की मुस्कान पा
मिली मौन स्वीकृतियाँ

अलंकृत सुगंधराज से
स्तुति थाल पुष्प माल
गुंजित भजन स्वर लहरियाँ
अति प्रणम्य उषाकाल
खगों के मधुर कलरव में
बजी मंदिर घन्टियाँ

तितलियाँ इठला रही हैं
प्रसून की सुवास पा
पँखुडियाँ चमक मचल मचल
कह रही हैं पास आ
चिर कथाएं प्रेम की फिर
कुरेदती हैं स्मृतियाँ

- ओम प्रकाश नौटियाल
१ सितंबर २०२१

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