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          भोर तलक रजनीगंधा

 

 

लिपट रात से महकी, जागी
भोर तलक रजनीगंधा

फूल टँके जूड़े लताओं के
सिले ओंठ सारी हवाओं के
शांत निशा में धीरे धीरे
फैली खुशबू की गंगा
लिपट रात से महकी, जागी
भोर तलक रजनीगंधा

सूरज ढ़लते सोईं पलकें
बन्द कोर से नदियाँ छलकें
बजे कहीं वंशी की धुन भी
झील में झाँकें तारे चन्दा
लिपट रात से महकी, जागी
भोर तलक रजनीगंधा

टप टपके दीवाना महुआ
हवा उठाए महका झउआ
भोर ने बाँटे द्वारे-द्वारे
धूप के टुकड़े टूटी तन्द्रा
लिपट रात से महकी, जागी
भोर तलक रजनीगंधा

- त्रिलोचना कौर
१ सितंबर २०२१

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