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          ओ रजनीगंधा

 

 

सब-कुछ खोना नहीं उड़ाकर
ओ रजनीगंधा!
कुछ तो खुशबू रखो बचाकर
ओ रजनीगंधा!

पल में ये अनुकूल रहेगा
पल में ये प्रतिकूल
मौसम पर पतियाने की
पगली मत करना भूल
कुछ तो धड़कन
रखो बचाकर
ओ रजनीगंधा!

बहुत कठिन है कायम रखना
जीवन में पहचान
आ जाते हैं राह थामने
कितने ही व्यवधान
कुछ तो दम-खम
रखो बचाकर
ओ रजनीगंधा!

दोनों हाथ लुटाने का है
मिला हुआ वरदान
परहित प्राण निछावर करना
सर्वोपरि बलिदान
कुछ तो संयम
रखो बचाकर
ओ रजनीगंधा!

- डा रामेश्वर प्रसाद सारस्वत
१ सितंबर २०२१

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