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           रजनीगंधा अँखुआई

 

 

तन केसरिया मन बासंती
रजनीगंधा अँखुआई
नैनों में पूनम चाँद खिले
बगिया देखो मुस्काई

अहसासों की हरी पत्तियाँ
जड़ लेतीं आशा की बिंदी
जब लगती है कीट लोभ की
भाव कंद की उड़ती चिंदी
अरमानों की नन्हीं कलियाँ
रजनीगंधा अँगनाई

पुष्पित होकर बढ़ती जाए
मिल जाए जो खाद प्रीत की
नमी नहाये जब गुलदस्ता
खुश्बू संजो रहा गीत की
घेर रही रजनीगंधा को
खरपतवारी अतुराई

सूख रहे हों पात समय के
कंद याद के सोए दिखे
है मौसम की भाषा अपनी
अनुकूलन पर बोए दिखे
भरी मंजरी फूल खिलें जब
शोभा लगती अधिकाई

बलुआई दोमट की मिट्टी
रजनीगंधा गोरी चिट्टी
खुशियों वाली धूप खिली हो
शीत-उष्ण भी मिली-जुली हो
फुनगी बढ़कर जल्दी-जल्दी
नयी पा रही ऊँचाई

- ऋता शेखर ‘मधु’
१ सितंबर २०२१

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