ख़ुशबू की
स्वरलिपियों
पर आओ साथी
कुछ गुनगुनाएँ
एक एक शब्द चुने मन का
सहज सरल स्नेहिल जीवन का
रजनी की बगिया में
रजनीगंधा जैसे
महमहाएँ
पात पात ढोलकिया हो ले
वंशी बन हवा मगन डोले
झींगुर झन झनन झनन
घुँघरू बन आँगन में
झनझनाएँ
मीडें सब पल से पल तक की
आलापें ताने राहत की
आह्लादित मुरकी
की साँकल हौले हौले
खटखटाएँ
- सीमा अग्रवाल
१ सितंबर २०२१ |