आँगन से देहरी
वातायन
फुदक-फुदक
बस पल-पल चहको
रजनीगंधा जैसी महको
बाहर का मौसम बेढंगा
कैसे कोई लेगा पंगा
स्वर्णमयी सपनों के झोके-
मत भूले से इनमें बहको
रजनीगंधा जैसी महको
जीवन में रीतापन क्यों हो
बढ़ो जिधर सिर्फ जय विजय हो
उच्छृंखल वासना उदधि में
बड़वानल जैसी क्यों दहको
रजनीगंधा जैसी महको
अम्मा की पलछिन की उलझन
घर-घर दुष्यंतों की पलटन
अत्याचारी सम्मुख डटकर-
चण्डी सी डहक डहक डहको
रजनीगंधा जैसी महको
- अनिल कुमार वर्मा
१ सितंबर २०२१ |