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ये बताओ हे
कुटज |
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ये बताओ हे कुटज! इन पत्थरों
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कौन देवा सींचता है तन तुम्हारा
सूखते जब भूमि के
जल स्रोत सारे
टूटते कब हौसले फिर
भी तुम्हारे
काटने पर्यावरण का
धुर प्रदूषण
गात धर लेते असंख्यक
पुष्प भूषण
देखकर हैरान होते शुष्क पर्वत
इन अभावों में खिला यौवन तुम्हारा
ख्यात कवियों की उपेक्षा
सह रहे हो
पर व्यथा अपनी कहाँ तुम
कह रहे हो
हे सजग प्रहरी प्रकृति के
मौन साधक!
तप्त लू होती नहीं क्या
कर्म-बाधक?
रस लुटाते हो निपट, नीरस विजन में
धन्य हो तुम, धन्य है जीवन तुम्हारा
- कल्पना रामानी |
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इस माह
कुटज विशेषांक में
गीतों में-
छंद में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त
में-
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