अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

हम कुटज हैं

 

जानती कैसे कुल्हाड़ी हम कुटज हैं
सान्त्वना में था लिखा
हमको किसी ने

थरथराकर था गिरा
जब चीड़ कटकर सामने
मैं अडिग, निर्भय, मगर
जीवन लगा था काँपने

क्या पता व्यापारियों को हम कुटज हैं
डायरी में था रखा
हमको किसी ने

नीम, कीकर, बाँस,
सब उस रात भागे आ गए
जान जोखिम में पड़ी ये देख
सब घबरा गए

आरियों को क्या पता था हम कुटज हैं
लेखिनी से था छुआ
हमको किसी ने

पत्थरों की चोटियाँ
पीने लगी हैं लोभ को
घाटियाँ जीने लगी हैं
बस तभी से क्षोभ को

कटारियों को क्या पता था हम कुटज हैं
अमरत्व अक्षर का दिया
हमको किसी ने

- कल्पना मनोरमा 
१ जुलाई २०१९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter