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हम कुटज हैं |
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जानती कैसे कुल्हाड़ी हम कुटज हैं
सान्त्वना में था लिखा
हमको किसी ने
थरथराकर था गिरा
जब चीड़ कटकर सामने
मैं अडिग, निर्भय, मगर
जीवन लगा था काँपने
क्या पता व्यापारियों को हम कुटज हैं
डायरी में था रखा
हमको किसी ने
नीम, कीकर, बाँस,
सब उस रात भागे आ गए
जान जोखिम में पड़ी ये देख
सब घबरा गए
आरियों को क्या पता था हम कुटज हैं
लेखिनी से था छुआ
हमको किसी ने
पत्थरों की चोटियाँ
पीने लगी हैं लोभ को
घाटियाँ जीने लगी हैं
बस तभी से क्षोभ को
कटारियों को क्या पता था हम कुटज हैं
अमरत्व अक्षर का दिया
हमको किसी ने
- कल्पना मनोरमा
१ जुलाई २०१९ |
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