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औषध बनकर मेटता

 

'कुटज' कहें, 'ठिगना' नहीं, करें नहीं उपहास
औषध बनकर मेटता, जीवन के संत्रास

नहीं मानता हार मैं, नहीं माँगता भीख
कहे मुझे दुनिया 'कुटज', देता सच्ची सीख

जड़ उपयोगी, बीज भी, उपयोगी है छाल
गुणकारी इस 'कुटज' में, लाखों छिपे कमाल

लड़ता जो हर व्याधि से, लेता उनको लील
वही 'कुटज' जग में यहाँ, जो है उद्यमशील

भाँति-भाँति के रोग हैं, सबका एक निदान
औरों के हित तुम जियो, यही 'कुटज' का ज्ञान

- डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'  
१ जुलाई २०१९

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