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अरे कुटज के फूल

 

चढ़े न कोई तेरे ऊपर
किसी तरह की धूल
अरे, कुटज के फूल!!

कुड़ा, कुरैया, कर्ची तुम हो
तुम हो सदाबहार
बन में उगकर बने चमेली
तुम सोलह श्रृंगार

हरीतिमा की काट न पाये
कोई माली चूल
अरे, कुटज के फूल!!

श्वेत रंग चंदा जैसा हो
देह हरी अनमोल
तुम देवों का चंदन-वंदन
तुम मन्दिर का खोल

हरित तरीवन कोमल पत्ते
बनना कभी न शूल
अरे, कुटज के फूल!!

कुछ करौंदिये खड़े हुए हैं
छुपकर तेरे पास
एक करेला नीम चढ़ा है
ओढ़ कँटीली घास

खुद करील से घिरे हुए तुम
हँसता देख बबूल
अरे. कुटज के फूल!!

ले जाने आये हैं तुमको
किसी महल के हाथ
आनेवाले और बहुत हैं
अमले-गमले साथ

मत कम करना गरिमा अपनी
तुम मस्ती में झूल
अरे, कुटज के फूल!!

- शिवानन्द सिंह 'सहयोगी'  
१ जुलाई २०१९

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