१
उगे हिमालय अंक में, मधुर सुवासित फूल
श्वेत श्याम दो रूप में, कुटज डाल में झूल
कुटज डाल में झूल, तपन सर पर सह लेते
विषम परिस्थिति मध्य, सदा हँस के खिल लेते
तन मध्यम आकार, भरा औषध का आलय
प्रकृति भेंट अनमोल, पौध ये उगे हिमालय
२
मानव हित सब साधते, सदा निभाते संग
शिवि दधीचि सम सौंपते, अपने सारे अंग
अपने सारे अंग, छाल फल पत्र मूल से
हरते हैं सब कष्ट, दर्द पीड़ा व शूल से
तन के रोग असीम, जीवनी करें संकुचित
बिना लिए ही शुल्क, वैद्य हैं ये मानव हित
३
श्वेत पुष्प मन मोहते, कुटज कई हैं नाम
कवि-लेखक भी कह गए, सुंदरता अभिराम
सुंदरता अभिराम, यक्ष ने अंजुरि भर के
लिए कुटज के पुष्प, वंदना विनती कर के
भार्या को संदेश, दिलाया विरह दुखी जन
भेज मेघ को दूत, मोहते श्वेत पुष्प मन
४
फलियाँ लंबी कुटज की, छुपा इंद्र यव बीज
रामबाण औषध यही, लें मधुमेह मरीज
लें मधुमेह मरीज, रक्त शोधक यह माना
औषधि का भंडार, रोग कोई भी जाना
क्षीण अंग प्रत्यंग, थकन से हों आलम्बी
देते तब आराम, कुटज की फलियाँ लंबी
५
सदा निभाते साथ तुम, अरे कुटज के फूल
हम मानव लाचार है,अक्सर जाते भूल।
अक्सर जाते भूल, करे उपकार हमेशा
उन्नत है विज्ञान, नहीं किंचित अंदेशा
प्राकृतिक उपचार, कौन तुम सा कर पाते
बचे न कोई रोग, सदा ही साथ निभाते।
- ज्योतिर्मयी पंत
१ जुलाई २०१९