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अद्भुत वरदान

 

कुदरत का जग को कुटज, अद्भुत है वरदान
परहित अपनी देह को, करता है बलिदान

जीव-जगत में अप्रतिम, मानवता अनुरूप
है क्षणभंगुर जिंदगी, सुरभित तेरा रूप

बना वैद्य सम दोस्त ये, करे खूब उपकार
पर्यावरण सुधार कर, धरती का शृंगार

अति गुणकारी है कुटज, औषधि का भंडार
यह संजीवन साँस का, करता दूर विकार

कालिदास के काव्य में, महका तेरा नाम
अर्घ्य बादलों को दिया, कविता को सम्मान

देह सींचता खींचकर, चट्टानों से नीर
खड़ा विजन में शांत मन, सहे ताप औ' पीर

रहे आभावों में सदा, आँके 'मंजू' मोल
पानी पोषण कुंज वन, सहजे है अनमोल

आरी इन पर मत चला, होती वायु अशुद्ध
बढ़ता फिर से ताप है, मौसम होता क्रुद्ध

प्रहरी प्रकृति का है सदा, फर्ज निभाता मौन
पुण्य कर्म में रत भला, बता 'मंजु' तू कौन

कुटज हितैषी जगत का, देता है उल्लास
जीव-जन्तु का सदन यह, वन की मीठी आस

- मंजु गुप्ता
१ जुलाई २०१९

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