पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति तुक-कोश

१. ११. २०१७

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फिर उठेगा शोर एक दिन

 

 

फिर उठेगा शोर एक दिन

दो घड़ी की रात है यह
दो घड़ी का है अँधेरा
एक चिड़िया फिर क्षितिज में
खींच लायेगी सवेरा
मानता हूँ आज की
ये रात मुश्किल है मगर-
लौट आएगा वो कल का
बीत बैठा दौर एक दिन

कब तलक घुटता रहेगा
हक-सरे बाजार में
एक दिन हलचल मिलेगी
देखना अखबार में
लोग उमड़ेंगे सड़क पर
हाथ में ले तख़्तियाँ
बाज़ू-ए-क़ातिल नपेगा
फिर तुम्हारा ज़ोर एक दिन

दग्ध आवेशों में तन-मन
जल रहा तो क्या करूँ?
एक सपना फिर भी दिल में
पल रहा तो क्या करूँ?
काँपते ये हाथ लिखने में
कहानी आज की, पर
गुनगुनाते होंठ से-
गाएगा कोई और एक दिन

- शुभम श्रीवास्तव ओम

इस माह

गीतों में-

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शुभम श्रीवास्तव ओम

अंजुमन में-

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मयंक अवस्थी

छंदमुक्त में-

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सुशील कुमार

दोहों में-

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त्रिलोचना कौर

लंबी कविता में-

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मुक्तिबोध - अँधेरे में

पिछले माह
दीपावली के अवसर पर

गीतों में-
अरुण मित्तल अद्भुत, कुँअर बेचैन, कुमार रवीन्द्र, कृष्ण कुमार, कृष्ण भारतीय, गीता पंडित, जयराम जय, निर्मल शुक्ल, पंकज परिमल, परशुराम शुक्ल, ब्रह्मजीत गौतम, मनोज जैन मधुर, रामशंकर वर्मा, रूपचंद्र शास्त्री मयंक, हरि हिमांशु

दोहों में-
अनिल जैन, अभिषेक कुमार अम्बर, अम्बरीष श्रीवास्तव, अशोक पाण्डेय अनहद, कल्पना रामानी

मुक्तक में-
आचार्य संजीव सलिल

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संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी