अनुभूति में
अश्विन गांधी की कविताएँ-
नई रचनाओं में-
कारवाँ
खुशी और दर्द
सूरज ढलता है
छंदमुक्त में-
अपनी खुशी के लिये
अनुभूति एक साल की
ओ अनुभूति! जनमदिन मुबारक तुझे
कोई आता नहीं
बुढ़ापा
मध्य समंदर
मुझे कुछ कहना है
अनुभूति
तुम्हारी हो या हमारी
मेरा दोस्त मेरा आसमाँ
संकलन में-
वसंती हवा–
गीत वसंत के
धूप के पाँव–
गरमी
गांव में अलाव–
आज सुबह
गुच्छे भर अमलतास– सोचता
हूँ
पिता की तस्वीर–
शिवास्ते पंथानः सन्तु
ज्योति पर्व–
एक दिया जले
–
कोटि कोटि दीप जलें
नया साल–
नया साल आने को है
ममतामयी–
माँ प्यारी माँ
क्षणिकाओं में-
पतंग
आँखों से
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अनुभूति, एक साल की
अभिव्यक्ति रो रही थी
कैसे करूँ मैं अभिव्यक्ति,
अनुभूति के बिना?
आयी अनुभूति पीछे पीछे,
हो गई आज एक साल की . . . .
समय बीत गया
यादें रह गई
वसंत की हवा चली,
धूप के पाँव गिरे,
वर्षा मंगलमय रही,
और
ज्योति पर्व के दीपक जले . . . .
इन्सान छोटा या बड़ा
अनुभूति का मालिक है
पल पल साथ रहने वाली
जीवंत सदा है अनुभूति . . . .
अभिलाषा है
अनुभूति सदा
अभिव्यक्त होती रहे
जुग जुग जियो अनुभूति!
१ जनवरी २००२ |