जीवन मँझधार
यादें हज़ार
जवानी का जोश
जगत मुट्ठी में
कुछ करना था
कुछ बनना था
कैसे कहाँ
मंज़िल की खोज थी
कदम इधर
कदम उधर
सीधे टेढ़े
आगे पीछे
ठोकरें दर बदर
फिर भी
दर्द छुपाए
एक बाप
हाथ थामे रहा
आरजू हज़ार
ज़िंदगी की तलाश
देश से परदेश
सब छोड़ना था
दूर दूर जाना था
मंज़िल की पुकार थी
एक बाप ने
मूक आँखों से
कह दिया
बेटा
शिवास्ते पंथान: सन्तु!
- अश्विन गांधी
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