मृत्तिका का दीप तब तक जलेगा अनिमेष
एक भी कण स्नेह का जब तक रहेगा शेष
हाय जी भर देख लेने दो मुझे
मत आँख मीचो
और उकसाते रहो बाती
न अपने हाथ खीचो
प्रात जीवन का दिखा दो
फिर मुझे चाहे बुझा दो
यों अँधेरे में न छीनो-
हाय जीवन ज्योति के कुछ क्षीण कण अवशेष
तोड़ते हो क्यों भला
जर्जर रुई का जीर्ण धागा
भूल कर भी तो कभी
मैंने न कुछ वरदान मांगा
स्नेह की बूँदें चुवाओ
जी करे जितना जलाओ
हाथ उर पर धर बताओ
क्या मिलेगा देख मेरा धूम्र कालिख वेश
शांति शीतलता अपरिचित
जलन में ही जन्म पाया
स्नेह आँचल के सहारे
ही तुम्हारे द्वार आया
और फिर भी मूक हो तुम
यदि यही तो फूँक दो तुम
फिर किसे निर्वाण का भय
जब अमर ही हो चुकेगा जलन का संदेश
-शिवमंगल सिंह 'सुमन'
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