सर्दी
कुहरे की झीनी
चादर में
यौवन रूप छिपाये
चौपालों पर
मुस्कानों की आग उड़ाती जाये
गाजर तोडे
मूली नोचे
पके टमाटर खाये
गोदी में इक भेड़ का बच्चा
आँचल में कुछ सेब
धूप सखी की अँगुली पकड़े
इधर-उधर मँडराये
-निदा फाज़ली
|
असह्य शीत
असहय शीत से
बचते
हाथ ताप रहे थे हम तुम
बुझते जा रहे थे
उड़ उड़ कर
चिंगारी की तरह
एक एक स्वप्न
और
पहुँच जाती थी रूह तक
एक सिहरन सी।
- आस्था
|
जाड़े की रात
विहग मूक
से पड़े नींद में,
हेमंत रात्रि का कंपन।
चतुर्दिशायें ठिठुर रही हैं,
शिशिर बने हैं हिमकण।
कहीं अलाव की आँच सिमटती,
कहीं अबोध की ठिठुरन।
रात्रि स्तब्ध सी पड़ी हुई है,
मेघ व्योम में घन घन।
ऐसे में भी गेह के भीतर,
उष्ण हुए अपने तन।
प्रिया तेरे साँसों की गरमी,
तेरा प्रेम आलिंगन।
- अभिजित
|
आया जाड़ा
आया
जाड़ा, आया जाड़ा
गिरती रहती बर्फ है।
ऐसी शीतल हवा बही कि
सब सर्दी में सर्द हैं।।
बड़े-बड़े पेड़ों पर देखो
छायी श्वेत हिम-पर्त है।
ऐसे में सूरज की गर्मी
अच्छी लगती सर्व है।।
इसी
समय से आता अपना
बड़े दिन का पर्व है।
आया जाड़ा, आया जाड़ा
गिरती रहती बर्फ है।।
- छवि
त्रिवेदी |
पहला दिन
नये
साल का पहला दिन
गुज़रे सबका अच्छा दिन
सूरज निकला आया दिन
सूरज डूबा बीता दिन
सुबह से लेकर शाम तक
किस्तों में बँट जाता दिन
नाबीना ये क्या जाने
कैसी राते कैसा दिन
दिल में आग लिये सूरज
दर दर भटका सारा दिन
कोहरे की चादर ओढे
ठिठुरी रातें ठिठुरा दिन
क़तरा कतरा रात कटी
लम्हा लम्हा गुज़रा दिन
-
सुनील दानिश
|
साथ साथ
जाड़े की सुर्ख धूप हो
हम साथ साथ चलें
तुम मख़मली दुशाला ओढ़े
मैं ऊदी पश्मीनी टोपी में
हाथों में हाथ लिये
खुशनुमा पहाड़ों पर
ये सोचते हुए
कि वक्त यहीं रुक जाये
और हम साथ साथ चलें
-
दीपक सहगल
सर्द दिन
फिर एक
सर्द ठिठुरा हुआ दिन
दबे पाँव चलता हुआ
बालकनी से कमरे में आया
मुझे अपने बिस्तर में
दुबका हुआ देख कर
मुस्कुराया
-
मुहम्मद अलवी
|