| व्यर्थ विषय क्षणिक भ्रमित प्यार पाकर तुम क्या करोगे?आकाशहीन-आधार पाकर तुम क्या करोगे?
 तुम्हारे ही कदमों से कुचली, रक्त-रंजित भयी,सुर्ख फूलों का हार पाकर तुम क्या करोगे?
 जिनके थिरकन पर न हो रोने हँसने का गुमानऐसी घुँघरू की झनकार पाकर तुम क्या करोगे?
 अभिशप्त बोध करता हो जो देह तुम्हारे स्पर्श से,उस लाश पर अधिकार पाकर तुम क्या करोगे?
 तुम जो मूक हो, कहीं बधिर, तो कुछ अंध भीमेरी कथा का सार पाकर तुम क्या करोगे?
 २ अक्तूबर २००४   |