| अनुभूति में 
                    अजंता शर्मा की रचनाएँ नई कविताएँ-आओ जन्मदिन मनाएँ
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 कौतूहल
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 पहली बारिश
 प्रतीक्षा
 प्रवाह
 व्यर्थ विषय
 |  | प्रतीक्षा धरती की आँखों की 'प्रतीक्षा'सखी-सी लगती थी मुझे,
 आज शाम
 बारिश की बूँदों ने
 निबाह डाले
 अपने सारे वचन।
 हवाएँ लेकर आई हैं मेरे पास
 मेरी सखी के
 बदन की सुवासित महक।
 बरसात की चादर से लिपटी मेरी सखी
 झाँकती है शर्माती दुलहन-सी
 कहीं कहीं,
 जानती हूँ
 कि
 आज सारी रात सोएगी वो
 एक ठंडक तले,
 और
 मेरे नेत्रों की तृष्णा
 हर रात
 सूखे आसमान पर
 ढूँढ़ेगी 'उसे'
 क्या?
 रखा होगा आसमान ने?
 कहीं छिपाकर?
 मेरे हिस्से का बादल
 और उसकी बरसात!
 ९ अगस्त २००३ |