| अनुभूति में 
                    अजंता शर्मा की रचनाएँ नई कविताएँ-आओ जन्मदिन मनाएँ
 ढूँढती हूँ
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 ज़िंदगी
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 कौतूहल
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 दो छोटी कविताएँ
 पहली बारिश
 प्रतीक्षा
 प्रवाह
 व्यर्थ विषय
 |  | जमाव तमतमाए सूरज ने मेरे गालों से लिपटी बूँदें सुखा 
डालीं,ज़िंदगी तूने जो भी दिया, उसका ग़म अब क्यों हो?
 मैं जो हूँ
 कुछ दीवारों और काँच के टुकड़ों के बीच
 जहाँ चंद उजाले हैं
 कुछ अँधेरे घंटे भी
 कुछ ख़ास भी नहीं
 जिसमे सिमटी पड़ी रहूँ
 खाली सड़क पर
 न है किसी राहगीर का अंदेशा
 फिर भी तारों से डरती हूँ
 के जाने
 मेरी आँचल को क्या प्राप्त हो?
 फिर भी
 हवा तो हैं!
 मेरी खिड़की के बाहर
 उड़ती हुई नन्हीं चिड़ियों की कतार भी हैं।
 मेरे लिए
 ठहरी ज़मीं है
 ढाँपता आसमाँ हैं
 ऐ ज़िंदगी
 तेरे हर लिबास को जब ओढ़ना है
 तो उनके रंगों में फ़र्क करने से क्या हासिल?
 २४ मार्च २००३ |