| अनुभूति में 
                    अजंता शर्मा की रचनाएँ नई कविताएँ-आओ जन्मदिन मनाएँ
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 प्रवाह
 व्यर्थ विषय
 |  | प्रवाह बनकर नदी जब बहा करूँगी,तब क्या मुझे रोक पाओगे?
 अपनी आँखों से कहा करूँगी,
 तब क्या मुझे रोक पाओगे?
 हर कथा रचोगे एक सीमा तक
 बनाओगे पात्र नचाओगे मुझे
 मेरी कतार को काटकर तुम
 एक भीड़ का हिस्सा बनाओगे मुझे
 मेरी उड़ान को व्यर्थ बता
 हँसोगे मुझ पर, टोकोगे मुझे
 एक तस्वीर बना, दीवार पर चिपकाओगे मुझे,
 पर जब
 अपने ही जीवन से कुछ पल चुराकर
 मैं चुपके से जी लूँ!
 तब क्या मुझे रोक पाओगे?
 एक राख को साथ रखूँगी।
 अपनी कविता के कान भरूँगी।
 तब क्या मुझे रोक पाओगे?
 जितना सको प्रयास कर लो इसे रोकने की।
 इसके प्रवाह का अंदाज़ा तो मुझे भी नहीं अभी!
 २ अक्तूबर २००४ |