| अनुभूति में 
                    अजंता शर्मा की रचनाएँ नई कविताएँ-आओ जन्मदिन मनाएँ
 ढूँढती हूँ
 मेरी दुनिया
 
 कविताओं में-
 तीन हाइकू
 जाने कौन-सी सीता रोई
 ज़िंदगी
 दूरियाँ
 अनुरोध
 अस्तित्व
 उत्प्रेरक
 कौतूहल
 जमाव
 दो छोटी कविताएँ
 पहली बारिश
 प्रतीक्षा
 प्रवाह
 व्यर्थ विषय
 |  | अस्तित्व मुझसे वो पूछता है कि अब तुम कहाँ हो?घर के उस कोने से
 तुम्हारा निशां धुल गया
 है वो आसमां वीरां, जहाँ भटका करती थी तुम।
 कहाँ गया वो हुनर खुद को उड़ेलने का?
 अपनी ज़िंदगी का खाँचा बना
 शतरंज की गोटियाँ चलती फिरती हो
 कहाँ राख भरोगी?
 कहाँ भरोगी एक मुखौटा?
 खा गई शीत-लहर, तुम्हारे उबाल को
 अब
 तुम्हें भी इशारों पर मुसकाने की आदत पड़ गई है।
 तुम भी
 इस नाली का कीड़ा ही रही।
 भाती है जिसपर
 वही अदना-सी ज़िंदगी
 वही अदना-सी मौत
 ९ जनवरी २००३ |