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अनुभूति में यतीन्द्रनाथ राही की रचनाएँ

गीतों में-
अभिसार वाले दिन
आबरू घर की
आँख में
उमर को बाँध लो
कहाँ गए
कुछ रुक लो
ख़त में तुमने भेज दिया
चलो चल दें
झर गए वे पात
दिन गए रातें गईं
दूर देश की चित्र सारिका
मधुकलश मधुमास
सज गई है
हमारे रेत के घर
हो गया है प्राण कोकिल

संकलन में-
होली है-
दिन होली के
       दिन हुरियारे आए

वसंती हवा- आएँगे ऋतुराज
         आए हैं पाहुन वसंत के

 

उमर को बाँध लो

देखो,
चली जाए न यों ढलकर।

थमाओ हाथ,
बाहर घास ने
कालीन डाला है
किरन ने कुनकुने जलसे
अभी तो मुँह उजाला है
हवाएँ यों निकल जाएँ न,
हम दो बात तो कर लें
खिली है ऋतु सुहानी
आँजुरी में, फूल कुछ भर लें
लताओं से विटप की-
अनकही बातें सुनें चलकर!

पुलकते तट
उठी लहरें
सिमट कर बाँह में सोई
कमल-दल फूल कर महके
मछलियाँ डूब कर खोई
लिखी अभिसार की गाथा
कपोती ने मुँडेली पर
मदिर मधुमास लेकर घर गई
सरसों- हथेली पर
महकता है कहीं महुआ
किसी,
कचनार में घुलकर।

उलझती ऊन
सुलझाकर
नया स्वेटर बनाओ तुम।
बिखरते गीत के,
खोए हुए-फिर बंध जोड़े हम
बहुत दिन हो गए हैं
डूब कर जीना नहीं जाना
कभी तुमने कभी हमने
कोई मौसम नहीं माना
बहे फिर
प्यार की इस उष्णता में
कुहरिका गलकर!

१८ मई २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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