अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में यतीन्द्रनाथ राही की रचनाएँ

गीतों में-
अभिसार वाले दिन
आबरू घर की
आँख में
उमर को बाँध लो
कहाँ गए
कुछ रुक लो
ख़त में तुमने भेज दिया
चलो चल दें
झर गए वे पात
दिन गए रातें गईं
दूर देश की चित्र सारिका
मधुकलश मधुमास
सज गई है
हमारे रेत के घर
हो गया है प्राण कोकिल

संकलन में-
होली है- दिन होली के

       दिन हुरियारे आए

वसंती हवा- आएँगे ऋतुराज
         आए हैं पाहुन वसंत के



 

 

दूर देश की चित्र सारिका

दूर देश की,
चित्र सारिका में बैठा
एकांत
याद कर रहा हूँ
गाँवों की-
गलियों वाले दिन।

आँगन-आँगन गौरेया थी।
मुडगेली पर कागा
जब मुर्गे ने बाँग लगाई
तभी  सवेरा जागा
छप्पर-छानी पर
कपोत के
जोड़े मुक्त विहरते
द्वार,
नीम की डाल-डाल पर
बैठे मोर कुहराते
चोपालों पर ढोला-मारू
आल्हा गाते दिन।

रामायण के पाठ
कथाएँ
किस्से और कहानी
हँसी कहकहे रात्रि जागरण
बातें सभी पुरानी
शहद घुले नाते-रिश्ते थे
गंगा की पावनता
मन थे खुली किताब
आचरण में
स्नेहिल व्यापकता
वृंदावन का रूप सजाते
रहस रचाते दिन

यहाँ बेशकीमत दुनिया है
पर सब नकली-नकली
हवा आग पानी धरती तक
बचा न कुछ भी असली
आदम के पाँवों में पहिए
पाँखों, बोझिल सपने
बिछा रहा है आसमान में
धरती के कुछ चिंदने
शायद
तरस-तरस रह जाएँ
दिखे न अब जीवन में
रुनझुन चलत रेनु तन मंडित
मुख दधिराते दिन!

९ जून २००८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter