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अनुभूति में यतीन्द्रनाथ राही की रचनाएँ

गीतों में-
अभिसार वाले दिन
आबरू घर की
आँख में
उमर को बाँध लो
कहाँ गए
कुछ रुक लो
ख़त में तुमने भेज दिया
चलो चल दें
झर गए वे पात
दिन गए रातें गईं
दूर देश की चित्र सारिका
मधुकलश मधुमास
सज गई है
हमारे रेत के घर
हो गया है प्राण कोकिल

संकलन में-
होली है-
दिन होली के
       दिन हुरियारे आए

वसंती हवा- आएँगे ऋतुराज
         आए हैं पाहुन वसंत के

 

झर गए वे पात

झर गए वे पात
जो पीले हुए
व्यर्थ ही फिर
पलक क्यों गीले हुए।

साँस तो,
जो आ गई है, जाएगी
प्यास मरु की
कब तलक भरमाएगी
एक कतरा
मिट गया बादल बना
सर बना सरिता बना
सागर बना
पर मिली पाती गगन से
नेह की,
ह्रदय उमड़ा
पंख सपनीले हुए।

फिर,
नया आँचल
लरजती लोरियाँ
हाथ तारे
पाँव रेशम डोरियाँ
रूप यौवन प्यार आकर्षण नए
ज़िंदगी के पल
सुहाने बुन गए
रात आई
भोर का परचम लिए
पाँव थिरके
रूप गरबीले हुए।

क्रम सतत यह
ज़िंदगी का मर्म है
रूप परिवर्तन
सृजन का धर्म है
एको अहम से
बहुस्याम के लिए
बुझ रहे हैं
रोज़ ये जलते दिए
उम्र बीती,
गुत्थियाँ सुलझी नहीं
धुँधलके
कुछ और
झबरीले हुए।

९ जून २००८

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