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अनुभूति में यतीन्द्रनाथ राही की रचनाएँ

गीतों में-
अभिसार वाले दिन
आबरू घर की
आँख में
उमर को बाँध लो
कहाँ गए
कुछ रुक लो
ख़त में तुमने भेज दिया
चलो चल दें
झर गए वे पात
दिन गए रातें गईं
दूर देश की चित्र सारिका
मधुकलश मधुमास
सज गई है
हमारे रेत के घर
हो गया है प्राण कोकिल

संकलन में-
होली है-
दिन होली के
       दिन हुरियारे आए

वसंती हवा- आएँगे ऋतुराज
         आए हैं पाहुन वसंत के

 

दिन गए रातें गईं

दिन गए
रातें गईं, बातें गईं
आँख से-
घनघोर बरसातें गईं।

तृप्ति पनघट घाट तक
पहुँचे कहाँ
घर कहीं औघट पड़े रीते रहे
जीत कर भी,
मैं सदा हारा रहा
हार कर भी
तुम सदा जीते रहे
थीं तुम्हारे हाथ
केवल बाज़ियाँ
पर हमारे हाथ
राह-मातें गई।

ओठ काँपे बात अटकी
मौन था
छिप रहा था जो पलक में
कौन था?
दूर क्षितिजों पर
उभरते रंग नए
इंद्रधनुषी रूप अनुपम रच गए
आशिषें थीं,
फूल थे, सम्मान थे
पर हमारे भाग्य तो घातें गईं।

तरु-लता-पल्लव
मुरझ कर रह गए
गीत निर्झर
द्वार तक आ
बह गए।
रोक पाया मैं न
बाहें सल हुईं
याचनाएँ,
आज सब निष्फल हुईं
आँजुरी में
बाँधते मृगजल रहे
दूर हर पल दूर
ख़ैरातें गईं

९ जून २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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