मधुकलश मधुमास
पीतवसना शून्यता
नूपुर रणन यह
क्षितिज-अंबर नृत्य-रत,
नूतन सृजन यह
हैं महावर-राग-रंजित
पद कमल दल
रूप-रस वासंतिका
प्लावित मरुस्थल
मधुकलश मधुमास
हम दो घूँट पी लें।
फूटने को-
कुलबुलाते नवल पल्लव
झुरमुटों में
गीत सोहर मधुर कलरव
लता कुंजों में-
मधुप-दल भाँवरें हैं
गीत-छौने
बुन रहे स्वर झालरें हैं
चार दिन,
ऋतु वांतिका है,
और जी लें!
उमर की बैसाखियाँ
नचने लगी हैं,
बर्फ़ में फिर-
आग-ली नचने लगी है,
भावनाएँ मुक्त
कंचुकि बंध टूटे
रोम पुलकित
प्यार के नव उत्स फूटे
गहरते-
अंगड़ाइयों में
ताल-झीलें।
१८ मई २००९
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