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अनुभूति में यतीन्द्रनाथ राही की रचनाएँ

गीतों में-
अभिसार वाले दिन
आबरू घर की
आँख में
उमर को बाँध लो
कहाँ गए
कुछ रुक लो
ख़त में तुमने भेज दिया
चलो चल दें
झर गए वे पात
दिन गए रातें गईं
दूर देश की चित्र सारिका
मधुकलश मधुमास
सज गई है
हमारे रेत के घर
हो गया है प्राण कोकिल

संकलन में-
होली है- दिन होली के

       दिन हुरियारे आए

वसंती हवा- आएँगे ऋतुराज
         आए हैं पाहुन वसंत के
 

 

कहाँ गए

कहाँ गए
अधरों के चटकते गुलाब?

अमलताश शब्दों के
वीणा के स्वर
वाक्यों में निर्झरिणी
गीत की लहर
रोम-रोम संस्फुरित
भाषा अनुभाव्य
गालों पर
अथ से इति
लिखे महाकाव्य
पलकों में प्रश्न
और सैंकड़ों जबाब।

कहाँ गए-
सीप में बँधे-गुथे सागर
बाहों में-
हरसिंगार
दहकते पलाश
छवियों के इंद्रधनुष
रूप के उजास
कंधों पर-
सघन मेघ
अंग-अंग वासंती
जाने क्या कहती-सी
अंगड़ाई ऋतुवंती
प्राप्ति एक बूँद
और तृप्ति बेहिसाब
कहाँ गए?

९ जून २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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