अनुभूति में राजेन्द्र वर्मा की
रचनाएँ-
नयी रचनाओं
में-
आत्मश्लाघा से
लबालब
दृष्टि से ओझल रहा
प्रेम-ही-प्रेम
पौध रोपी
ये जो वाटिकाएँ बँटी हुईं
नये दोहों
में-
दिखे
सूर्य गतिमान
अंजुमन
में-
प्रार्थना ही प्रार्थना
प्रेम का पुष्प
माँ गुनगुनाती है
सत्य निष्ठा के सतत अभ्यास
हम निकटतम हुए
गीतों में-
आँसुओं का कौन ग्राहक
करें तो क्या करें
कागज की नाव
कैसा यह जीवन
जादूगरनी
दिल्ली का ढब
बेच रहा हूँ चने कुरमुरे
बैताल
मेरे बस का नहीं
रौशन बहुत माहौल
सच की कौन सुने
दोहों
में-
खनक उठी तलवार |
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प्रेम-ही-प्रेम
प्रेम-ही-प्रेम जिसके हृदय वस्तुतः
उसके लेखे सभी ईशमय वस्तुतः।
सत्य-करुणा-क्षमा जिसके अन्तस् बसे
उसके सम्मुख हुआ नत अनय वस्तुतः।
दासता जो परिस्थिति की माने नहीं
पक्ष में उसके होता समय वस्तुतः।
प्रेमवश जो पराजय को स्वीकार ले
हार कर भी उसी की विजय वस्तुतः।
जो हृदय के मृदुल भाव छकता नहीं
उसके हिस्से में है तल्ख़ मय वस्तुतः।
वह तो रहता है थिर, अस्त होता नहीं
एक संभ्रम है, रवि का उदय वस्तुतः।
काव्य में रस अगर उसकी आत्मा है तो
छन्द से ही सुरक्षित है लय वस्तुतः।
१ दिसंबर २०१८
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