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अनुभूति में राजेन्द्र वर्मा की
रचनाएँ-

नये गीतों में-
कागज की नाव
कैसा यह जीवन
जादूगरनी
मेरे बस का नहीं
सच की कौन सुने

अंजुमन में-
प्रार्थना ही प्रार्थना
प्रेम का पुष्प
माँ गुनगुनाती है
सत्य निष्ठा के सतत अभ्यास
हम निकटतम हुए

गीतों में-

आँसुओं का कौन ग्राहक
करें तो क्या करें
दिल्ली का ढब
बेच रहा हूँ चने कुरमुरे
बैताल
रौशन बहुत माहौल

दोहों में-
खनक उठी तलवार

 

मेरे बस का नहीं

मेरे बस का नहीं कि मैं
बिरुदावालियाँ गाऊँ
हवा के सँग बहता जाऊँ

सूर्यग्रहण वाले दिन को मैं
कैसे रात कहूँ?
जगमग-जगमग संध्या को मैं
कैसे प्रात कहूँ?
मेरे बस का नहीं कि मैं
संभ्रम पर इतराऊँ
हवा के सँग बहता जाऊँ

ज्ञानी कहलाने वाले
अज्ञान बाँटते हैं
ध्यानी कहलाने वाले
सर्वस्व देखते हैं
मेरे बस का नहीं कि
ज्ञानी-ध्यानी कहलाऊँ
हवा के सँग बहता जाऊँ

अंतस में है रुदन, हँसी का
अभिनय कैसे हो?
कोलाहल में शून्य क्षणों का
संचय कैसे हो?
मेरे बस का नहीं, झूठ का
परचम लहराऊँ
हवा के सँग बहता जाऊँ

६ जुलाई २०१५

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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