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अनुभूति में राजेन्द्र वर्मा की
रचनाएँ-

अंजुमन में-
प्रार्थना ही प्रार्थना
प्रेम का पुष्प
माँ गुनगुनाती है
सत्य निष्ठा के सतत अभ्यास
हम निकटतम हुए

गीतों में-

आँसुओं का कौन ग्राहक
करें तो क्या करें
दिल्ली का ढब
बेच रहा हूँ चने कुरमुरे
बैताल
रौशन बहुत माहौल

दोहों में-
खनक उठी तलवार

 

 

बैताल

बूढ़े बरगद! तू ही बतला,
कैसे बदलूँ चाल?
मेरे ही कंधों पर बैठा मेरा ही बैताल।

स्वर्ण छत्र की छाया में पल रहा
मान-सम्मान,
अमृतपात्र में विष पीने का
मिलता है वरदान,
प्रश्नों के पौरुष के आगे उत्तर है बेहाल,

उत्सवधर्मीं हाथ दे रहे, बिन
माँगे आशीष,
तक्षक रोके राह खड़ा है
ताने अपना शीश,
बीन पड़ी है मौन, बजाता कालबेलिया गाल,

प्रस्तर की प्रतिमा में होते
रहे प्रतिष्ठित प्राण,
पाषाणों की प्रकृति न बदली
रहे सदा पाषाण,
मंदिर-मंदिर भटक रहा मैं लिए अर्चना-थाल,

नागफनी से घिरी हुई मेरे
जीवन की राह,
चकाचौंध में खोई है मेरे
अंतर की चाह,
ओ मेरे सामर्थ्य! जाग अब काट रेशमी जाल!

१ दिसंबर २००५

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