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अनुभूति में राजेन्द्र वर्मा की
रचनाएँ-

अंजुमन में-
प्रार्थना ही प्रार्थना
प्रेम का पुष्प
माँ गुनगुनाती है
सत्य निष्ठा के सतत अभ्यास
हम निकटतम हुए

गीतों में-

आँसुओं का कौन ग्राहक
करें तो क्या करें
दिल्ली का ढब
बेच रहा हूँ चने कुरमुरे
बैताल
रौशन बहुत माहौल

दोहों में-
खनक उठी तलवार

 

 

खनक उठी तलवार

जब जब संकट में पड़ा मातृभूमि का मान
देश प्रेमियों ने किया तन मन धन बलिदान

दुश्मन ने जब जब किया भारत माँ पर वार
माँ के लालों की तभी खनक उठी तलवार

वीरों को भाता नहीं परवशता मधुकुंभ
रोटी खाई घास की राणा ने सकुटुंब

दानी भामाशाह ने लुटा दिया सर्वस्व
स्वीकारा कब शिवा ने यवनों का वर्चस्व

मातृभूमि की वंदना वीरों का है गान
फिर देखें कैसे भला वे माँ का अपमान

मंगल पाँडे ने दिया हमें क्रांति का मंत्र
क्रांतिकारियों से हिला अँग्रेजों का तंत्र

डायर की भी क्रूरता बुझा न पाई आग
तीर्थ शहीदों का बना जलियाँवाला बाग

खुदीराम करतार भी हुए देश हित खाक
मातृभूमि पर बलि चढ़े बिस्मिल औ' अश्फ़ाक

फाँसी का फंदा मिला किंतु न छोड़ी टेव
ऐसे त्यागी राजगुरु, भगतसिंह, सुखदेव

वीरों को प्रिय प्राण से मातृभूमि सम्मान
हँस हँस कर देते सदा निज प्राणों का दान

लक्ष्मीबाई ने धरा जब रणचंडी रूप
देश प्रेम दीपक तभी जलने लगा अनूप

आजादी आजाद की लाई गहरा रंग
फिर सुभाष की फौज से रुकी न थी वह जंग

लाला गाँधी गोखले तिलक जवाहर लाल
धूल धूसरित कर गए अँग्रेजों की चाल

जीत अहिंसा की हुई टूट गया साम्राज्य
दौड़ी लहर उमंग की मिला स्वदेशी राज्य

देशप्रेमियों से हुए पुनः प्रतिष्ठित प्राण
क्यों न रखें अक्षुण्ण हम भारत माँ की आन

९ अगस्त २०१०

 

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