अनुभूति में राजेन्द्र वर्मा की
रचनाएँ- अंजुमन
में-
प्रार्थना ही प्रार्थना
प्रेम का पुष्प
माँ गुनगुनाती है
सत्य निष्ठा के सतत अभ्यास
हम निकटतम हुए
गीतों में-
आँसुओं का कौन ग्राहक
करें तो क्या करें
दिल्ली का ढब
बेच रहा हूँ चने कुरमुरे
बैताल
रौशन बहुत माहौल
दोहों
में-
खनक उठी तलवार |
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प्रार्थना ही प्रार्थना
प्रार्थना ही प्रार्थना हमसे न होती है
याचकों से याचना हमसे न होती है।
भक्ति-श्रद्धा-आस्था, अपनी जगह लेकिन
बुद्धि की अवहेलना हमसे न होती है।
शोषकों की कामना जो पूर्ण करती हो
उस ऋचा की अर्चना हमसे न होती है।
आंतरिक सौंदर्य जब तक हो न परिलक्षित
रूप की अभ्यर्थना हमसे न होती है।
कष्टप्रद जीवन हमें स्वीकार्य निःसन्देह
सत्य की अवमानना हमसे न होती है।
सद्गुणों की स्थापना जब तक न हो जाए
मोक्ष की भी कामना हमसे न होती है।
११ मई २०१५
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