अनुभूति में राजेन्द्र वर्मा की
रचनाएँ- अंजुमन
में-
प्रार्थना ही प्रार्थना
प्रेम का पुष्प
माँ गुनगुनाती है
सत्य निष्ठा के सतत अभ्यास
हम निकटतम हुए
गीतों में-
आँसुओं का कौन ग्राहक
करें तो क्या करें
दिल्ली का ढब
बेच रहा हूँ चने कुरमुरे
बैताल
रौशन बहुत माहौल
दोहों
में-
खनक उठी तलवार
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बेच रहा हूँ चने कुरमुरे
बेच रहा हूँ चने कुरमुरे
लेकिन उनको कौन ख़रीदे
फास्ट-फूड की दूकानों पर
विलासिता की भीड़ लगी है,
दो की जगह चार लेकर भी
महिमामंडित हुई ठगी है,
मैं अंधों के बीच बैठकर
व्यर्थ काढ़ता रहा कसीदे।
कर्ज़ लदे अपने ग्राहक हैं
रिक्शेवाले, ठेलेवाले
चपरासी, मजदूर, भिखारी
जूठन खाकर पलनेवाले,
फिर उधार बेचा हरेक को,
चाहे पैसे दे कि नहीं दे।
१ दिसंबर २००५
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