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अनुभूति में राजेन्द्र वर्मा की
रचनाएँ-

अंजुमन में-
प्रार्थना ही प्रार्थना
प्रेम का पुष्प
माँ गुनगुनाती है
सत्य निष्ठा के सतत अभ्यास
हम निकटतम हुए

गीतों में-

आँसुओं का कौन ग्राहक
करें तो क्या करें
दिल्ली का ढब
बेच रहा हूँ चने कुरमुरे
बैताल
रौशन बहुत माहौल

दोहों में-
खनक उठी तलवार

 

 

आँसुओं का कौन ग्राहक

आंसुओं का कौन है ग्राहक यहाँ
फिर उन्हें हम क्यों उतारें हाट में।

हम प्रदर्शन हीनता का क्यों करें
आप अपनी दृष्टि में हम क्यों गिरें
हर कहीं आश्रय न मिलता पीर को,
फिर उसे हम छोड़ दें क्यों बाट में।

प्रेम-पथ पर जब चला कोई मनुज,
देवगण भी हो गए जैसे दनुज,
भाग्यशाली हम कि भीगे हैं नयन,
नीर जन्मा है कभी क्या काठ में।

कुछ हलाहल हम पिएँ, कुछ तुम पियो
चार पल हम भी जिएँ, तुम भी जियो
क्या समय की यह न हमसे माँग है,
डाल दे लंगर नहीं हम घाट में।

१ दिसंबर २००५

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