अनुभूति में राजेन्द्र वर्मा की
रचनाएँ-
नये गीतों
में-
कागज की नाव
कैसा यह जीवन
जादूगरनी
मेरे बस का नहीं
सच की कौन सुने
अंजुमन
में-
प्रार्थना ही प्रार्थना
प्रेम का पुष्प
माँ गुनगुनाती है
सत्य निष्ठा के सतत अभ्यास
हम निकटतम हुए
गीतों में-
आँसुओं का कौन ग्राहक
करें तो क्या करें
दिल्ली का ढब
बेच रहा हूँ चने कुरमुरे
बैताल
रौशन बहुत माहौल
दोहों
में-
खनक उठी तलवार
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कागज़ की नाव
बाढ़ अभावों की आयी है
डूबी गली-गली
दम साधे हम देख रहे
कागज़ की नाव चली
माँझी के हाथों में है
पतवार आँकड़ों की
है मस्तूल उधर ही
इंगिति जिधर धाकड़ों की
लंगर जैसे जमे हुए हैं
नामी बाहुबली
आँखों में उमड़े-घुमड़े हैं
चिंता के बादल
कोरों पर सागर लहराया
भीगा है आँचल
अपनेपन का दंश झेलती
क़िस्मत करमजली
असमंजस में पड़े हुए हम
जीवित शव जैसे
मत्स्य-न्याय के चलते जीवन
चले भला कैसे?
नौकायन करने वालों की
है अदला-बदली
६ जुलाई २०१५
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