अनुभूति में राजेन्द्र वर्मा की
रचनाएँ-
नये गीतों
में-
कागज की नाव
कैसा यह जीवन
जादूगरनी
मेरे बस का नहीं
सच की कौन सुने
अंजुमन
में-
प्रार्थना ही प्रार्थना
प्रेम का पुष्प
माँ गुनगुनाती है
सत्य निष्ठा के सतत अभ्यास
हम निकटतम हुए
गीतों में-
आँसुओं का कौन ग्राहक
करें तो क्या करें
दिल्ली का ढब
बेच रहा हूँ चने कुरमुरे
बैताल
रौशन बहुत माहौल
दोहों
में-
खनक उठी तलवार |
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कैसा यह जीवन
कैसे बतलाऊँ, कैसा
यह जीवन है?
मेरा ही घर दुःख ने
डेरा डाला है
धीरज स्वयं हुआ जाता
मतवाला है
यद्यपि, कल मुझको भी
अमृतपान करना था
किन्तु अभी हाथों में
विष का प्याला है
अधरों पर मुस्कान, हृदय
में क्रंदन है!
सुख क्या है? दुःख की
आँखों का सपना है
कहना मुश्किल, कौन
यहाँ पर अपना है!
यद्यपि, निपट अकेले
ही रहना मुझको
किन्तु निकटता की ऊष्मा
में तपना है
लोकरीति है, या कि यही
अपनापन है?
सुख-दुख के आगे यात्रा
करनी होगी
युग-युगांतर की पीड़ा
हरनी होगी
यद्यपि, सागर-पार उतरना
है मुझको,
किन्तु हाथ मेरे टूटी
तरणी होगी
विश्वासों के गाँव अभी
भी अनबन है
६ जुलाई २०१५
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