काल नहीं सूना हो जाए काल नहीं सूना हो जाए
जीवन से उसको भर दें,
जीवन कहीं ठिठक न जाए,
कंपन को अविरत कर दें।
लिजलिजापन और अंधियारे
चिपके चिपके उलझेंगे,
आओ सतहों से नीचे तक
नाखूनों से खुरचेंगे,
रवि की किरणों से तभी प्रखर
रंध्रों तक रंजित कर दें।
कोलाहल की इन राहों में
शांति चरण चलते जाएँ,
सारे साज मरण के हों पर
गीत सृजन के हम गाएँ,
बेसुध वीणा के तारों को
नव उद्घोषों का स्वर दें।
अभिशाप हवाओं के सारे
प्राणों तक फैल न जाएँ,
विषधाराओं में हाथों से
डांडें भी छूट न जाएँ,
साँसों के पतझर को अब हम
मधुमासों का मर्मर दें।
५ अप्रैल २०१०
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