रश्मि-पत्रों पर
रश्मि पत्रों पर शपथ ले मैं यही कह रही हूँ
चाहते हो लो परीक्षा मैं स्वयं इम्तहान हूँ
हूँ पवन का मस्त झोंका
पर तुम्हें ना भूल पाई
इसलिए यह भोर संध्या
गीत बनकर मुझको गाई
कंटको की राह पर चलती रही हैरान हूँ
क्यों मचलती हूँ समंदर के लिए हैरान हूँ
शून्य में कुछ खोजती हूँ
पर मिलन का विश्वास है
इस शहर में है सभी कुछ
मन में मेरे सन्यास है
आँसुओं का कोष संचित है बड़ी धनवान हूँ
पर नदी के साथ बहकर तृप्ति से अनजान हूँ तुम
रहो बादल घनेरे
मैं तो सरस बरसात हूँ
देख पाती जल सतह ना
हँसती हुई जलजात हूँ
तुम भले समझो न समझो आज तक मैं मौन हूँ
कल चिरंतन प्रश्न का उत्तर यही पहचान हूँ
६ अप्रैल २००९ |