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अनुभूति में निर्मला जोशी की
रचनाएं-

नए गीतों में-
तुम क्या जानो हम क्या जानें
नई करवट
बेटियाँ
रश्मि-पत्रों पर
रोशनी की याचना

गीतों में-
आ गया है मन बदलना
आलोचना को जी रही हँ
गाँव वृंदावन करूँगी
गीतों के हार
चलते चलते शाम हो गई

दर्पन है सरिता
पर्वत नदियाँ हरियाली
पानी लिख रही हूँ
बुन लिया उजियार मैने
मन अभी वैराग्य लेने
शरद प्रात का गीत
सूर्य सा मत छोड़ जाना

संकलन में—
ज्योति सत्ता का गीत   

  बुन लिया उजियार मैंने

एक यायावर किरण गत रात मेरे द्वार आई
इसलिए तो बुन लिया है, गीत यह उजियार मैंने।

मैं अंधेरे से अभी तक युद्ध
कितने लड़ चुकी हूँ।
इस पसीने को नगीने की
तरह से जड चुकी हूँ।
इस बुनावट से मुझे अनुभूति कुछ ऐसी हुई है
कर लिया जैसे मधुरतम गीत का शृंगार मैंने।

दूब हो या ओस दोनों ही
मुझे प्यारी लगी हैं।
हरितिमा के साथ आकर
जिंद़गी न्यारी लगी हैं।
अब गुलाबों से मुझे बिंधना उचित कैसे लगेगा?
क्योंकि जूही की शपथ ले छू लिया कचनार मैंने।

सीढ़ियों पर पांव रखते ही
मुझे ऐसा लगा है।
दर्द सारी ज़िंदगी का
बंधु या मेरा सगा है।
हाँ, मुझे वह इस तरह देता रहा शुभकामनाएं
वह अगर है गीत तो फिर सुन लिया गुंजार मैंने।

हाँ, नदी का ठहर जाना
छदम या अभिनय नहीं है।
हाशियों पर जो लिखे हैं
शब्द वह अनुनय नहीं हैं।
बहुत धीमी चाल से जो धूप आई सीढ़ियों तक
वह बने सूरज इसी से कर दिया उपचार मैंने।
 
१६ दिसंबर २००४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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