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अनुभूति में निर्मला जोशी की
रचनाएं-

नए गीतों में-
तुम क्या जानो हम क्या जानें
नई करवट
बेटियाँ
रश्मि-पत्रों पर
रोशनी की याचना

गीतों में-
आ गया है मन बदलना
आलोचना को जी रही हँ
गाँव वृंदावन करूँगी
गीतों के हार
चलते चलते शाम हो गई

दर्पन है सरिता
पर्वत नदियाँ हरियाली
पानी लिख रही हूँ
बुन लिया उजियार मैने
मन अभी वैराग्य लेने
शरद प्रात का गीत
सूर्य सा मत छोड़ जाना

संकलन में—
ज्योति सत्ता का गीत   

  पानी लिख रही हूँ

एक परिचित जो यहाँ पिछले जनम में खो गया था
इस जनम में वह मिला उसकी कहानी लिख रही हूँ।

वह समंदर की कथाओं सा
रहा अब तक अधूरा।
गीत है जिसको न कर पाई
समय के साथ पूरा।
यह बहुत व्याकुल कि उसका कंठ सूखा जा रहा
इसलिए बनकर नदी मैं मीत, पानी लिख रही हूँ।

मोतियों-सा वह बिखरता है
कभी जैसे कि पारा।
वह किसी जलयान का है मीत
या कोई किनारा।
वह मुझे जिस हाट में यूं ही अचानक मिल गया था
कागज़ों पर भेट के क्षण की निशानी लिख रही हूँ।

द्वन्द्व से संवेदना की रोज़
वह करता सगाई।
वह स्वयं को दे रहा है
इस तरह नूतन बधाई।
अनवरत चलते हुए या सीढ़ियां चढ़ते हुए भी
मैं उसी के नाम पर सारी रवानी लिख रही हूँ।

एक मीठे दर्द-सा कुछ
इस तरह भाने लगा है।
वह हृदय की गूंज था
अब ओंठ पर आने लगा है।
वह अकिंचन किंतु, उसके दान की शैली अलग है
इसलिए अपने सृजन की राजधानी लिख रही हूँ।

१६ दिसंबर २००४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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