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अनुभूति में निर्मला जोशी की
रचनाएं-

नए गीतों में-
एक नशा कर बैठे हैं हम
एक पर्वत
पा गए कोई सुबह
काल नहीं सूना हो जाए
 

गीतों में-
आ गया है मन बदलना
आलोचना को जी रही हँ
गाँव वृंदावन करूँगी
गीतों के हार
चलते चलते शाम हो गई

तुम क्या जानो हम क्या जाने
दर्पन है सरिता
नई करवट
पर्वत नदियाँ हरियाली
पानी लिख रही हूँ
बुन लिया उजियार मैने
बेटिया
मन अभी वैराग्य लेने
रश्मि-पत्रों पर
रोशनी की याचना

शरद प्रात का गीत
सूर्य सा मत छोड़ जाना

संकलन में—
ज्योति सत्ता का गीत   

 

एक पर्वत

एक पर्वत आँख में है,
काँपता है बहुत ही दिन।

शून्य में उठते हुए ये हाथ।
केवल
थरथराहट साथ।
बोझ बढ़ता, जा रहा है
साँस के ये अंक
गिन-गिन।
काँपता है बहुत ही दिन।

रीति युग ने नई सीखी-
फूल में है गंध तीखी।
गुलाबों का क्या ठिकाना
सरस
प्राणों के परस बिन!
काँपता है
बहुत ही दिन।

सृष्टि का यह आचरण है।
ऊँघता वातावरण है।
सुलगता विश्वास सारा
आँसुओं में
छिपा अनगिन।
काँपता है बहुत ही दिन।

५ अप्रैल २०१०

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