रात भर काला
धुआँ
रात भर काला धुआँ उठता रहा
दिल किसी खलिहान-सा जलता रहा
एक बिजली कौंध कर इतना हँसी
एक बादल देर रात तक रोता रहा
नाव की तक़दीर में था डूबना
एक माँझी देर तक सोता रहा
जानता था जो समय का फलसफा
वह समय के साथ में चलता रहा
यह 'उषा' किसकी दुआ का था असर
फूल पतझर में भी जो खिलता रहा
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