इंद्रधनुष की
तलाश में बहुत भटकी हूँ
एक इंद्रधनुष की तलाश में
डरती हूँ
यदि मिल जाए मेरा इंद्रधनुष
तो कहीं खो न जाए
पर मिले
और मिले भी तो कैसे?
एक कदम उसकी ओर बढ़ाती हूँ
तो एक कदम वह मुझसे पीछे हट जाता है।
क्षितिज-सा
नयनों के सामने
बाहों से परे...
खोने-पाने
और पा लेने की चाह
युगों की प्रतीक्षा
यक्ष प्रश्न-सी सालती रही
जीवन भर...
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