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लगातार भर रही हूँ चषक, मैं
बंधुत्व और सौहार्द्र के
नीरा से,
उठा ली है मैंने हाथों में
पूर्वजों की गंगाजली
एक दिव्य सनसनाहट फैल उठी है
मेरे रंध्रों में
असंख्य द्वीप प्रज्ज्वलित हो उठे हैं
मेरी संपूर्ण देह में
नटराज स्वयं
समाहित हैं मेरी थिरकन में
संपूर्ण विश्व नाच उठा है
मेरे संग,
दीपावली के आलोक में
'असतोमा सत गमय
तमसोमा ज्योतिर्गमय
मृत्योर्मा अमृत गमय... '
-उषा राजे सक्सेना
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