अनुभूति में प्रो. सुरेश ऋतुपर्ण की रचनाएँ-
नयी कविताओं में- अपने को मिटाना सीखो एक दिन ये मेरे कामकाजी शब्द
कविताओं में- उभरूँगा फिर एक धुन की तलाश गुज़रे कल के बच्चे घर लौट रहे बच्चे चलती है हवा जापान में पतझर झरती पत्तियों ने दिन दिन और दिन ध्वन्यालेख तन्मयता के निराला को याद करते हुए मुक्ति मौसम लक्ष्य संधान वसंत से वसंत सार्थक है भटकाव सुनो सुनो
वसंत से वसंत की राह में एक पड़ाव है पतझर
राही ऋतु-चक्र थक कर सुस्ताता है जहाँ पल भर वसंत के लालच में जिसने ठुकराया पतझर जीवन उसका निष्फल वंचनाभर
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