सुनो सुनो
सुनो, सुनो!
हवाओं में गूँज रहा है कैसा
झरती पत्तियों का
मध्यम-मध्यम संगीत!
सुनो, सुनो!
शरद की अगवानी में
वधू-प्रकृति
गा रही है मंगल-गीत!
देखो, देखो!
ओस भीगी पत्तियों के
झिलमिलाते गहने पहन
इठला रही है धरती!
देखो, देखो!
पेड़ों ने भी कर दी है समर्पित
अपनी सम्पूर्ण सम्पदा
और विनत खड़े हैं
दिगम्बर शिशुसमान!
हाँ! जानते हैं सभी
आ रहा है बसंत!
ला रहा है सबके लिए
प्यार-उपहार!
धरती के लिए धानी चुनरिया,
पेड़ों के लिए हरी पाग।
आगत के स्वागत में
बिछी हैं सभी की पलकें
संजोए है सभी ने रंग
खेलने को फाग।
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