प्रो सुरेश
ऋतुपर्ण
जन्म : १९४९ में मथुरा में।
शिक्षा : दिल्ली
विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम. ए., एम. लिट तथा पी-एच.
डी. की उपाधि
कार्यक्षेत्र : १९७१ से २००२ तक
दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध हिन्दू कालेज में अध्यापन। इस
बीच १९८८ से १९९२ तक ट्रिनीडाड व टुबैगो स्थित भारतीय हाई कमीशन
में राजनयिक के रूप में प्रति नियुक्ति और १९९९ से २००० तक
मॉरीशस स्थित महात्मा गांधी संस्थान में 'जवाहर लाल नेहरू चेयर
ऑफ इंडियन स्टडीज़' पर कार्य। इसके अतिरिक्त 'नई कविता में
नाटकीय तत्व' विषय पर शोध कार्य। मुक्तिबोध की काव्य सृष्टि और
हिन्दी की विश्वयात्रा सहित कई पुस्तकें प्रकाशित। १९८० में
प्रथम काव्य संग्रह 'अकेली गौरैया देख' प्रकाशित एवं उत्तर
प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वार पुरस्कृत। अनेक देशों में भ्रमण व
प्रवास। विश्व हिन्दी न्यास के अंतर्राष्ट्रीय समन्वयक एवं
त्रैमासिक पत्रिका हिन्दी जगत के प्रबंध संपादक।
सम्प्रति : टोकियो
यूनिवर्सिटी ऑफ फॉरेन स्टडीज़ में प्रोफेसर पद पर कार्यरत।
विश्व में हिन्दी प्रसार के आपके प्रयत्नों के लिए 'भारतीय
विद्या संस्थान' द्वारा 'ट्रिनीडाड हिन्दी भूषण' तथा उत्तर
प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा 'हिंदी विदेश प्रसार सम्मान' से
सम्मनित किया जा चुका है।
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अनुभूति में
प्रो. सुरेश ऋतुपर्ण की
रचनाएँ-
नयी कविताओं में-
अपने को मिटाना सीखो
एक दिन
ये
मेरे कामकाजी शब्द
कविताओं में-
उभरूँगा फिर
एक धुन की तलाश
गुज़रे कल के बच्चे
घर लौट रहे बच्चे
चलती है हवा
जापान में पतझर
झरती पत्तियों ने
दिन दिन और दिन
ध्वन्यालेख तन्मयता के
निराला को याद करते हुए
मुक्ति
मौसम
लक्ष्य संधान
वसंत से वसंत
सार्थक है भटकाव
सुनो सुनो
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