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अनुभूति में प्रो. सुरेश ऋतुपर्ण की
रचनाएँ-

नयी कविताओं में-
अपने को मिटाना सीखो
एक दिन

ये मेरे कामकाजी शब्द

कविताओं में-
उभरूँगा फिर
एक धुन की तलाश
गुज़रे कल के बच्चे
घर लौट रहे बच्चे
चलती है हवा
जापान में पतझर
झरती पत्तियों ने
दिन दिन और दिन

ध्वन्यालेख तन्मयता के
निराला को याद करते हुए
मुक्ति
मौसम
लक्ष्य संधान
वसंत से वसंत
सार्थक है भटकाव

सुनो सुनो

  लक्ष्य-संधान

बार-बार कहा गुरु ने -
''वत्स!
उठाओ धनुष
चढ़ाओ प्रत्यंचा
करो लक्ष्य संधान
छोड़ो कसकर बाण''

बार-बार पूछता है शिष्य
''लक्ष्य कहाँ है?
नहीं दीखती
वृक्ष पर रखी चिड़िया की आँख।''

हँस कर कहता है गुरु -
''यही तो है परीक्षा
दीखता, तो अब तक
मैं ही न कर चुका होता
लक्ष्य-संधान!''

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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