लक्ष्य-संधान
बार-बार कहा गुरु ने -
''वत्स!
उठाओ धनुष
चढ़ाओ प्रत्यंचा
करो लक्ष्य संधान
छोड़ो कसकर बाण''
बार-बार पूछता है शिष्य
''लक्ष्य कहाँ है?
नहीं दीखती
वृक्ष पर रखी चिड़िया की आँख।''
हँस कर कहता है गुरु -
''यही तो है परीक्षा
दीखता, तो अब तक
मैं ही न कर चुका होता
लक्ष्य-संधान!''
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