अनुभूति में
प्रो. सुरेश ऋतुपर्ण की
रचनाएँ-
नयी कविताओं में-
अपने को मिटाना सीखो
एक दिन
ये
मेरे कामकाजी शब्द
कविताओं में-
उभरूँगा फिर
एक धुन की तलाश
गुज़रे कल के बच्चे
घर लौट रहे बच्चे
चलती है हवा
जापान में पतझर
झरती पत्तियों ने
दिन दिन और दिन
ध्वन्यालेख तन्मयता के
निराला को याद करते हुए
मुक्ति
मौसम
लक्ष्य संधान
वसंत से वसंत
सार्थक है भटकाव
सुनो सुनो
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झरती पत्तियों ने
झरती पत्तियों ने
अपनी झरझराहट से
हमें बताया-
कल को पाने के लिए
देना पड़ता है अपना आज
और अपनी मरमराहट में
हमें समझाया -
जब दो अपने को तो
दो हृदय के सब रंगों के साथ
निष्काम समर्पित हुआ जो हर बार
उसी ने पाया वसंत का प्यार
बार-बार!
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